Stories Of Premchand

24: जयशंकर प्रसाद की लिखी कहानी आकाशदीप, AakashDeep - Story Written By Jaishankar Prasad

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Synopsis

‘‘बन्दी!’’ ‘‘क्या है? सोने दो।’’ ‘‘मुक्त होना चाहते हो?’’ ‘‘अभी नहीं, निद्रा खुलने पर, चुप रहो।’’ ‘‘फिर अवसर न मिलेगा।’’ ‘‘बड़ा शीत है, कहीं से एक कम्बल डालकर कोई शीत से मुक्त करता।’’ ‘‘आँधी की सम्भावना है। यही अवसर है। आज मेरे बन्धन शिथिल हैं।’’ ‘‘तो क्या तुम भी बन्दी हो?’’ ‘‘हाँ, धीरे बोलो, इस नाव पर केवल दस नाविक और प्रहरी हैं।’’ ‘‘शस्त्र मिलेगा?’’ ‘‘मिल जायगा। पोत से सम्बद्ध रज्जु काट सकोगे?’’ ‘‘हाँ।’’ समुद्र में हिलोरें उठने लगीं। दोनों बन्दी आपस में टकराने लगे। पहले बन्दी ने अपने को स्वतन्त्र कर लिया। दूसरे का बन्धन खोलने का प्रयत्न करने लगा। लहरों के धक्के एक-दूसरे को स्पर्श से पुलकित कर रहे थे। मुक्ति की आशा-स्नेह का असम्भावित आलिंगन। दोनों ही अन्धकार में मुक्त हो गये। दूसरे बन्दी ने हर्षातिरेक से उसको गले से लगा लिया। सहसा उस बन्दी ने कहा-‘‘यह क्या? तुम स्त्री हो?’’ ‘‘क्या स्त्री होना कोई पाप है?’’-अपने को अलग करते हुए स्त्री ने कहा। ‘‘शस्त्र कहाँ है-तुम्हारा नाम?’’ ‘‘चम्पा।’’ तारक-खचित नील अम्बर और समुद्र के अवकाश में पवन ऊधम मचा रहा था। अन्धकार से मिलकर पवन दुष्ट हो रहा था। समुद्र म