Stories Of Premchand

7: प्रेमचंद की कहानी "दरोगाजी" Premchand Story "Darogaji"

Informações:

Synopsis

एक मियाँ साहब लम्बी अचकन पहने, तुर्की टोपी लगाये, तांगे के सामने से निकले। दारोगाजी ने उन्हें देखते ही झुककर सलाम किया और शायद मिज़ाज शरीफ़ पूछना चाहते थे कि उस भले आदमी ने सलाम का जवाब गालियों से देना शुरू किया। जब तांगा कई क़दम आगे निकल आया, तो वह एक पत्थर लेकर तांगे के पीछे दौड़ा। तांगेवाले ने घोड़े को तेज किया। उस भलेमानुस ने भी क़दम तेज किये और पत्थर फेंका। मेरा सिर बाल-बाल बच गया। उसने दूसरा पत्थर उठाया, वह हमारे सामने आकर गिरा। तीसरा पत्थर इतनी ज़ोर से आया कि दारोगाजी के घुटने में बड़ी चोट आयी; पर इतनी देर में तांगा इतनी दूर निकल आया था कि हम पत्थरों की मार से दूर हो गये थे। हाँ, गालियों की मार अभी तक जारी थी। जब तक वह आदमी आँखों से ओझल न हो गया, हम उसे एक हाथ में पत्थर उठाये, गालियाँ बकते हुए देखते रहे